बड़े -बूढ़ो की सेवा जो बन सके -उनकी सेवा करो। माता-पिता वृद्ध हो जाएं तो जिम्मेदारीपूर्वक कर्तव्य निभाएं। कोई भी तरक्की देखकर जल सकता है ,पर बाप बेटे से हार मान कर भी प्रसन्न होता है। ऐसे पिता के प्रति फ़र्ज़ निभा रहे हो ,उससे बड़ा कोई पुण्य नहीं।
माँ ने जो बच्चों को दिया, किसी ने नहीं दिया है। माँ का कोई अवकाश नहीं है, अपनी नींद भी कुर्बान कर देती है। माँ-बाप और प्रभु कभी देकर नहीं गिनते। उनके लिए कुछ करो। धर्म समझ कर, खुश हो कर। कोई संतान माँ -बाप को कितना कीमती उपहार भी दे, छोटा पड़ेगा। माँ -बाप, अपने से बड़ो के प्रति किया गया कर्तव्य, उनका सम्मान करना , दिल से भावनाओं से दूर न जाना , महायज्ञ है। माँ -बाप , बड़ो का जितना आशीर्वाद ले सको , भला होगा।
जब प्रभु ने जीव को इस धरती पर भेजा, तो
जीव ने प्रभु से पूछा - 'मुझे नन्हा बच्चा बनाकर भेज रहो हो अकेले। ?'
'वहां दो फ़रिश्ते होंगे, एक पुरुष, एक स्त्री।'
' रूपये पैसे की जरूरत होगी तो ?
'ये दो फ़रिश्ते देंगे। हज़ारो लोग साथ होंगे ,'मगर ये दो ही हज़ारों का काम कर देंगे।'
'इनका क़र्ज़ कैसे उतार सकूँगा ?'
'इनको कभी रुलाना मत , माता-पिता की सेवा करना।'