शनिवार, 29 अगस्त 2015

संतो के अनमोल वचन

धर्म  




 
धर्म ईश्वर की सत्ता है, अलौकिक है, उसका पुनर्जागरण केवल  ईश्वर करता  है। 
धर्म अभावों को छीनता है। 
तृप्ति का अनुभव  कराता है। 
कल को सुधारने के लिए हमारी प्रतिकूलताओं पर प्रहार करता है, अनुकूलताओं  को प्रदान करता है। 



 धर्म में व्यवस्था है।  
धर्म का पहला प्रभाव अभयता है। 
धर्म धारण करने का फलादेश है ---अभयता। 
अभयता से भय चला जायेगा,
संदेह चला जायेगा। 
अपने से पूछ कर देखिये--
'क्या हमें भय  लगता है?'
जी हाँ ! खो जाने का भय। - सुख, सम्पति, मान, यश, सुंदरता, स्वास्थ्य और भी कईं। 
अभयता आएगी कहाँ से ?
अभयता आएगी - सत्व की शुद्धि से, सात्विकता से ,विचार की पवित्रता से।  
और वह आएगी,  आहार की पवित्रता से।


आहार की पवित्रता  कैसे आएगी ?
गांधी जी ने कहा -"पहला व्रत है -अस्वाद आहार का " 
 आहार से विचार की पवित्रता, वचन की शुद्धि आएगी, विचार की शुद्धि आएगी। धर्म, शील, सदाचार,संतोष सब आहार की पवित्रता से आएगा और उसीसे अभयता आएगी 
जिस  दिन अभयता आ जाएगी , धर्म आ जायेगा।


वसुधा के वैभव के भोक्ता मनु ने अंतिम अवस्था में सन्यास ले  लिया।
ऋषियों ,मुनियो ने पूछा - कौन सा संकल्प लेकर निकले हैं । 
मनु बोले ---"जो  हमने संसार को दिया वह नश्वर है, क्षणभंगुर है।" "ईश्वर , भगवद्प्राप्ति का संकल्प लेकर निकले हैं ,कि संसार को कुछ देकर जाएँ ",--
मनु ने गुरु की शरण ली  ध्रुपद साधना की प्राप्ति --


संतो के अनमोल वचन
सन्यास 

  सन्यास  सन्यास निठ्ठलेपन का नाम नहीं, सन्यास बहुत बड़े दायित्व का नाम है।  अपने पवित्र आचरण की पारदर्शिता के साथ समाज का विश्वास सहेज कर रखने का नाम सन्यास है 
समाज की पवित्रता अभिरक्षित हो, वैचारिक दृष्टि से पवित्र हो, सबमे कामनाओं का न्यास हो।  सब चीजे अपनी हैं, ज्ञान हो जायेगा।  न किसी को भयभीत करें ,  न किसी से भयभीत हों ।
वस्तु संचय में उलझे हैं तभी चिंता होती, भय रहेगा। 
चौथेपन का अर्थ है , उत्तराधिकारी- जीवन की उत्तरावस्था में , ढलान की अवस्था में,  हम समाज को श्रेष्ठ व्यक्ति देकर जायें, -जो हमारे बिखरे,टूटे, अधूरे सपनो को पूरा कर दे।  
 पिता का सपना पुत्र से पराजित होना  है,वह चाहता है कि  पुत्र उससे अधिक समृद्ध ,चर्चित हो, उसका संग्रह बड़ा हो।
  ऐसा उत्तराधिकारी एकदम हाथ नहीं आएगा।  successor किसी योजना से हाथ आएगा। उसकी तैयारी बहुत पहले से करनी होती है , स्वयं मूल्यों के अधीन जीवन जीकर अपने संस्कार ,चिंतन, विचारों से उसका निर्माण करना होता है।  
 मनु का संकल्प था कि धरती को ऐसा व्यक्ति दिया जाए, जो अभूतपूर्व हो, उत्तम हो, चरित्र की मर्यादा की स्थापना करे ।  मनु के ध्येय ने एक बड़ा मूल्य स्थापित किया। 
भारत को एक अभूतपूर्व आदर्श चरित्र दिया  -राम। 
मर्यादा को छूने चले तो -- श्री राम। 




            
                                             














                                                                                                 ( क्रमशः)





Sunday, October 11, 2015

सच्ची सफलता का रहस्य

                 बड़े -बूढ़ो की सेवा जो बन सके -उनकी सेवा करो। माता-पिता वृद्ध हो जाएं  तो जिम्मेदारीपूर्वक कर्तव्य निभाएं। कोई भी तरक्की देखकर जल सकता है ,पर बाप बेटे से हार मान कर भी प्रसन्न होता है।  ऐसे पिता के प्रति फ़र्ज़ निभा रहे हो ,उससे बड़ा कोई पुण्य नहीं।


                माँ ने जो बच्चों  को दिया, किसी ने नहीं दिया है।  माँ का कोई अवकाश नहीं है, अपनी नींद भी कुर्बान कर देती है।  माँ-बाप और प्रभु कभी देकर नहीं गिनते।  उनके लिए कुछ करो।  धर्म समझ कर, खुश हो कर। कोई संतान माँ -बाप को कितना कीमती उपहार भी दे, छोटा पड़ेगा।  माँ -बाप, अपने से बड़ो के प्रति किया गया कर्तव्य, उनका सम्मान करना , दिल से भावनाओं से दूर न जाना , महायज्ञ है। माँ -बाप ,  बड़ो  का जितना आशीर्वाद ले सको , भला होगा। 

            जब प्रभु ने जीव को इस धरती पर भेजा,  तो  

जीव ने प्रभु से पूछा -  'मुझे नन्हा बच्चा बनाकर भेज रहो हो अकेले। ?'    
'वहां दो फ़रिश्ते  होंगे, एक पुरुष, एक स्त्री।' 
' रूपये पैसे की जरूरत होगी तो ?                   
 'ये दो फ़रिश्ते देंगे।  हज़ारो लोग साथ होंगे ,'मगर ये दो ही हज़ारों का काम कर देंगे।' 
'इनका क़र्ज़ कैसे उतार सकूँगा ?'                           
'इनको कभी रुलाना मत , माता-पिता की सेवा करना।'                                                                                                                             

    

संतो के अनमोल वचन

  • हम मुँह से दो प्रकार की ऊर्जा पैदा कर  सकते हैं।  सबसे ज्यादा ऊर्जा पैदा करता है हमारा विचार ,जो सकारात्मक होता है या नकारात्मक।
  •  गुरु से परम ज्ञान प्राप्त करने के बाद निंदा नहीं करनी चाहिए। 
  • ऐसे स्थानों का भ्रमण करो,जहाँ प्रभु की  ऊर्जा का वास हो, सिद्ध ऋषि की ऊर्जा का वास हो। 
  • अहं हमें संवदेनशील बनाता है ,अतः हम आहत होते हैं।अहं  और भय प्रसन्नता नहीं देते। 
  •  मित्र ने कुछ कह दिया तो आहत मत होवो ,सोचो की यह मित्र की सोच है।
  •  स्वयं को सही बताना , विवाद करना अहं  पैदा करता है। 
  • सौ डिग्री तापमान पर पानी भाप बन जाता है ,ऐसे ही भक्त जब टप जाता है, तो अपना रूप गवांकर प्रभु-रुप हो जाता है।  
  •  दो ऋण हम उतार नहीं सकते ,माँ  का और गुरु का। 
  • लोगो से मदद मिलने पर हम उनका गुणगान करते हैं ,प्रभु के गुण  कोई नहीं गाता।  
  •  हमारे द्वारा किसी कर कार्य हुआ तो प्रभु का धन्यवाद करें कि हे प्रभु उसका काम तो होना ही था ,हमें निमित बना दिया।
  • "बानी अमिओ रस  है "वाणी मीठा रस  है, यदि अंतर में जहर भरा है तो निंदा ही करेंगे। निंदा तब होती है जब  अहंकार होता है।  ईर्ष्या की आग में हम स्वयं ही जलेंगे। सर पर अहं  का भार होगा तो मार्ग मुश्किल होगा ,कैसे प्रभु तक जाऊं ?जिस भाषा में प्रेम होगा ,प्रभु को समझ आएगी। सारे अवगुणों  के गले में बेड़ी डाल दो। "मन साचा  मुख साचा सोय। अवर न देखे  एकस बिन कोय "  मन में भी पवित्रता हो, वाणी में भी सत्यता हो,सब में प्रभु ही दिखाई दे और कुछ भी नहीं।
  • संत कौन है ? "जिना सासि गिरासि न वीसरै"जो निर्भय है , निरवैर है।  
  • जहाँ भी रहते हो ,गुरु से जुड़े रहो जब मुस्कराहट आये तो समझो गुरु ने याद किया है। 
  • किसी के लिए काम प्रेम से होता है ,प्रेम की माला सदैव पास रखिये। 
  • राक्षस दया करे तो मनुष्य बन जाता है, मानव दया करे तो देव बन जाता है। 
  • देवता-जो स्वयं पर नियंत्रण रखे। मनुष्य-जो देना सीख जाये तो देवता बन सकता है। राक्षस -दया करे तो मानव बन सकता है। 
  • प्रत्येक मनुष्य में तीन वृत्तियाँ हैं ,यदि ऊपर उठना है तो तीनो चीज़ें सीखो,प्रभु की गोद में बैठने का अधिकार हो जायेगा। तीन चीज़ें पवित्र करती हैं।  १  दान,यज्ञ   २  दया     ३ ज्ञान।  
  • वेदों को पढ़ो ,अच्छी बातें ,कुछ वाक्य रोज़ दोहराओ। ऊपर उठने के लिए जीवन मिला है,नीचे उतरने के लिए नहीं।  कभी रुकिए नही। 
  • उम्र के साथ स्वभाव ,वाणी  व् दृष्टि में शांति बढ़नी चाहिए। 
  • वेद कहते हैं -तुम्हारा जीवन आगे बढ़ने के लिए है। रोज़ कोशिश करो, मुस्काते रहो,जिम्मेदारियों से भागो नही।  
  • प्रभु  मेरे कंधे इतने मजबूत करो की जिम्मेदारी उठा सकूँ।  दूसरे के कंधे तो मुर्दे तलाशते हैं।  अपने कंधे मजबूत करो, ज़िंदगी को जी भर कर जीना चाहते हो तो। 
  • मेरे दायें हाथ में पुरुषार्थ है तो बाएं हाथ में सफलता।  
  • जैसे बाहर से सुंदर दिखाई देते हो , स्वभाव को अंदर से बी सुंदर बनाओ। 
  • मनुष्य सांप बने , बिच्छू बने, अनेक योनियों से होकर हम आए हैं। योनियों का स्वभाव हमारे अंदर है. इस दुनिया में हम आ गए, वह पशुता हटाकर मनुष्य बने, दिव्यता को प्रकट करें जीवन में। 
  • इस शरीर को बोझ मत बनाओ।  जिस दिन अपने लिए बोझ हुए   तो सारी दुनिया के लिए बोझ बन जाओगे। 
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Sunday, September 20, 2015

सत्संग


२० अक्टूबर,2015 दुर्गा मंदिर , पंजाबी बाग़ , नई दिल्ली में  सत्संग 




















सत्संग की महिमा शब्दों में अभिव्यक्त नहीं की जा सकती।
दोपहर तक वर्षा होती रही अमृतमय अनमोल वचनों की, झोली छोटी थी, बस इतने ही समेट कर ला सकी।


  • नहीं कोई फायदा जीने का, रोते को हंसाना  न आये। 
  • झगड़े सब घर में हैं,  झगड़े में भी मुस्करा दो। "ऐसा क्यों हुआ, उसको ऐसा करना चाहिए" न सोचो।  सोचो -हुआ तो हुआ। 
  • विकारों  के घेरे में घिरे न रहो ,एक-एक कर के निकालने की कोशिश करो। 
  • मनुष्य में कितनी शक्ति है ! इसने मेहनत से समुद्र को सुखा कर पानी की जगह जमीन बना दी, जो बहुत कठिन काम है,  फिर  क्या अपने विकारों को नहीं पकड़ सकते। 
  • हम अपनी शक्तियों को उजागर करें, प्रयोग करें । 
  • क्या हमारी इच्छाएं वाज़िब ,सही होती हैं?  हम सांसारिक चीज़े मांगते हैं, क्या उनसे संतुष्टि मिलेगी?   प्रभु  पाने की इच्छा करो.
  • धन की कमी नहीं है ,क्या शांत हो सकते हैं। इतना धन संभालेगा कौन -,चिंताएं ,परेशानी ,उलझनें देतीं  है।    धन. माया सुख नहीं देती। 
  •  कोई व्यक्ति-विशेष या स्थान-विशेष ख़ुशी नहीं देते ,ख़ुशी हमारे साथ है। 
  • हर चीज़ प्रभु के हुक्म में हो रही है ,उसके हुक्म के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। हमारा हर कार्य उसकी मर्ज़ी से होता है , जब हुक्म को ध्यान में रखेंगें तो अच्छा बुरा कुछ नहीं लगता।  जो  करेगा, प्रभु करेगा । उसका हुक्म चलने दीजिये।  
  • सब अपनी प्रकति के अधीन है ,जो भी कुछ कर रहा है। बाहर -भीतर पांच तत्वों से बना पुतला, यह शरीर चल रहा है।  यह प्रकृति के अधीन  है और प्रकृतिजन्य भी है। हम प्रकृति से बने हैं। कहीं जल-तत्व तो कहीं अग्नि-तत्व बढ़ा हुआ है, इलाज होता है संतुलन -प्रकृति से।  
  • ज्ञानी न किसी का दोष देखता है न किसी को दोष देता है। 
  • अपने को शांत करना।  जो जैसा चल रहा है ,चलने दो। 
  • कोई गलत कर रहा है ,समझाएं नहीं ,यह अहंकार है।  किसी की गलती नहीं है , हर व्यक्ति अपने स्वभाव के अधीन है ,अपने वश में नहीं।  ऐसा विचार हो ,तो हमेशा ही सब के साथ प्यार रहेगा ,किसी  की गलती नहीं लगेगी।  
  • "मैं और मेरे" में उलझ कर हम अपनों को भी गैर कर रहे हैं। 
  • 'हम दो हमारे दो 'से रास्ते का मज़ा नहीं मिलेगा। 
  •  गैरों में भी अपनत्व डालते जाएँ।
  • अधूरी चीज़ ख़राब लगती है , 'हर व्यक्ति अपने स्वभाव में  पूर्ण है' किसी की गलती नहीं देखे। 
  • दूसरों के कारण अपने को न उलझाएं। क्या हम चल सकते हैं दूसरों के कहने पर ?
  • एक मंजिल है हमारी - "प्रभु " ,यह लक्ष्य भी गुरु बताते हैं। 
  • संसार ने  बोला - 'पढ़ो, कमाओ ,शादी करो।' 
  •  गुरु प्रभु पाने का लक्ष्य बताता है। क्या हमने यह लक्ष्य साधा ? 
  • लक्ष्य रखेंगे ,तभी पाएंगे 
  • राह के आकर्षणों में मत अटकिये , सीधा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाओ।
                                                                                                                                   क्रमशः

Wednesday, September 2, 2015

संतो के अनमोल वचन



जीवन के स्तम्भ हैं -
  • आहार, 
  • निद्रा एवं 
  • ब्रह्मचर्य-निधि 
              


                                        महृषि चरक के अनुसार  हितकारी वह है, 
                                       जो शरीर की प्रकृति के अनुकूल है। 
                                        देह को भरा रखने के लिए मन खाली रखो। 



  आहार -अन्न ,प्राण ,औषधि आहार है।
  • धन 
धन,वित्त,,अर्थ ,सम्पति की तीन गति हैं 
  • १. दान,   
  • २ भोग, और
  •   ३ नाश।
  •  दान -अच्छे काम के लिए कहीं भी लगा हो। दान की तृप्ति सबसे बड़ी तृप्ति है। 
  • भोग -जो अत्यंत आवश्यक हो ,उसका भोग करें। 
  • नाश - जब दान नहीं करोगे , नाश होगा वित्त का।  माँ -बाप की सम्पति से कितनो का जीवन चल रहा है ? बच्चे  को योग्य बनाओ। 
  • भोजन कैसा हो ?
  •     भोजन में स्निग्धता हो -  घी , 
  • मधुरता -गुड़ की ढली ,
  • भोजन ताजा होना चाहिए।
     ब्रेड हमारी परंपरा का अंग नहीं है।बासी आहार जंक फ़ूड से बचें। 
  • भोजन  सुन्दर स्थान पर खाना चाहिए। 
  •  सबसे सुन्दर एकांत है। एकांत अर्थात्  शोर-शराबे से रहित। 
        आधा ध्यान टीवी में ,आधा भोजन में एकांत का नाश है।  
  • सामूहिक रूप से करने का विधान है। 
  • खाना चबा कर खाना चाहिए।
  • कम से कम  एक बार दिन में पालती मार  कर नीचे बैठ कर खाना चाहिए।
भोजन के बिना जीवन कर अर्थ कुछ नहीं। 
 जो कुछ कमा  हैं , वह भोजन के लिए है।  
अधिकतम  ३० मिनट चाहिए भोजन खाने  लगते हैं। 
खड़े -खड़े  भोजन नहीं करना चाहिए ,यह लाभकारी नहीं है। जान -बूझ कर् बीमारी को आमंत्रित  करते हैं। W.C. नहीं होना चाहिए। 
  • निद्रा 
  • भोजन  करने के दो घंटे बाद सोना चाहिए। 
  • रात को आहार कम लेना चाहिए 
  • रात १०-११ के बीच अवश्य सो जाना   चाहिए , आपात-काल  को छोड़ कर। 
  • सुबह ४-५ के बीच उठना चाहिए।  
सुबह जो जल्दी उठता है ,उसे कब्ज की शिकायत नहीं होती। देर से उठने वालों को कब्ज रहती है। 
कफ सुबह ४ से ६ बजे प्रबल होता है। दिन में पित्त बढ़ता है। रात में वायु ,घुटनो  जोड़ो  का दर्द, बढ़ता है। 
  • ठीक समय पर सोना ज़रूरी है। 
      सीधा सोने का विधान नहीं है, 
  • बायीं करवट सोएं। बाएं सुर से सूर्य नाड़ी प्रबल होती है।  हृदय पर जोर नहीं पड़ता है।
  •  तकिया इतना कि गर्दन नीचे न गिरे। डबल बैड का विधान नहीं है। ५० बीमारियां डबल बैड पर सोने से होती हैं। 
  • अलग सोने से संयम ,सदाचार व् प्रेम बढ़ता है. 
  •  ब्रह्मचर्य -निधि 
  • सबसे प्रेम करो ,किसी से डरो नहीं।  
  •  जीवन व्यवस्थित नहीं होगा तो तनाव होता है। 
  • आप किसी को मार कर भी आनंदित हो सकते है ,किसी को कुछ दे कर भी।  
  • साकारत्मक क्रिया करो और प्रसन्न रहो। 
  •                                                                               क्रमशः                                                       

Saturday, August 29, 2015

संतो के अनमोल वचन

धर्म  


धर्म ईश्वर की सत्ता है, अलौकिक है, उसका पुनर्जागरण केवल  ईश्वर करता  है। 
धर्म अभावों को छीनता है। 
तृप्ति का अनुभव  कराता है। 
कल को सुधारने के लिए हमारी प्रतिकूलताओं पर प्रहार करता है, अनुकूलताओं  को प्रदान करता है। 


 धर्म में व्यवस्था है।  
धर्म का पहला प्रभाव अभयता है। 
धर्म धारण करने का फलादेश है ---अभयता। 
अभयता से भय चला जायेगा,
संदेह चला जायेगा। 
अपने से पूछ कर देखिये--
'क्या हमें भय  लगता है?'
जी हाँ ! खो जाने का भय। - सुख, सम्पति, मान, यश, सुंदरता, स्वास्थ्य और भी कईं।
अभयता की प्राप्ति सत्व की शुद्धि से आएगी, जब सात्विकता, पवित्रता आएगी, एवं सात्विकता आएगी आहार की पवित्रता से। वचन की शुद्धि आएगी तथा विचार की शुद्धि आएगी, पवित्र आहार से ।
धर्म, शील, सदाचार, अभयता, संतोष सब आहार की पवित्रता से  आएगा। 

मनु ने अंतिम अवस्था में सन्यास लिया।  ऋषियों, मुनियों ने  उनसे पूछा - कौन सा संकल्प लिया है ?
"ईश्वर , जो  दुनिया को दिया है  वह तो  नश्वर है, क्षणभंगुर है।"  
मनु ने गुरु की शरण ली  ध्रुपद साधना की प्राप्ति की।  


सन्यास 


सन्यास निठ्ठलेपन का नाम नहीं,
समाज की पवित्रता अभिरक्षित हो, वैचारिक दृष्टि से पवित्र हो, सब में  कामनाओं का न्यास हो।  
सब चीज़ें अपनी हैं, यह ज्ञान हो जायेगा।  न किसी को भयभीत करें , न किसी से भयभीत हों ।
वस्तु संचय में उलझे हैं तो भय रहेगा।  
चौथेपन का अर्थ है, हम समाज को श्रेष्ठ व्यक्ति देकर जायें,
एक उत्तराधिकारी--
जिसे आप जानते हैं , पिता का सपना - पुत्र से पराजित होना चाहता है। 
पिता चाहता है कि पुत्र उससे अधिक समृद्ध हो, चर्चित हो, उसका संग्रह बड़ा हो। वह पिता के बिखरे, टूटे, अधूरे स्वप्नों को उत्तरावस्था में पूरा कर दे। 
ऐसा उत्तराधिकारी एकदम हाथ नहीं आएगा।
Successor किसी योजना से हाथ आएगा। 
हमारे संस्कार, चिंतन, विचारों से श्रेष्ठ उत्तराधिकारी का निर्माण होगा।  
मनु का संकल्प - धरती को ऐसा व्यक्ति जो अभूतपूर्व हो, दिया जाये। 
मनु के ध्येय ने एक बड़ा मूल्य स्थापित किया। 
भारत के चरित्र का नाम - राम। 
मर्यादा को छूने चले तो - श्री राम। 
भारत की बौद्धिकता, मनीषा, दार्शनिकता हैँ  - श्री कृष्ण
साहित्यकार, प्रियतम, दास, क्रांतिकारी हैँ - श्री कृष्ण 
                                                                                             ( क्रमशः)

Saturday, July 25, 2015

मेरा मुझ मैं कुछ नहीं (भाग -१)

 मेरा मुझ मैं कुछ नहीं भाग -१
 जो भी लिखा है इसमें मेरा कुछ नहीं , बस कुछ मुक्ता-कण  संतों- महात्माओं के प्रवचन से मिले हैं , शेयर कर रही हूँ। 
चैतन्य कौन है ?चैतन्य वह है जो प्रमाद -रहित  है।-
  सबसे बड़ी शक्ति उस व्यक्ति के  हाथ में है , जिसमे है एकाग्रता।
एकाग्रता वह विभूति है जिसके बिना आप महान  नहीं बन सकते।
यदि आप बड़े नहीं बन सके तो आप के पास है प्रमाद। अपने वैरी गिनने लगें तो एक ही है वह -प्रमाद। प्रमाद,आलस्य आता है अज्ञानता से  और पतन का मूल कारण भी यही है।   
                                                                                                                                         क्रमशः

क्षमा कीजिये

शब्द 
शब्द की सत्ता  विराट है , मारक भी है और तारक भी ।
जो शब्द की साधना कर लेते हैं , ब्रह्म को पा लेते हैं, विश्व में शासन करते हैं।
शब्द में अमृत छुपा है। .
शब्द बोधक भी है और औषधि भी।
शब्द का प्राणघातक प्रभाव भी होता है ।
अतः शब्द का प्रयोग सोच समझ कर करें।
क्षमा कीजिये यह सब मैं  स्वयं के लिए लिख रही हूँ।

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सन्यास निठ्ठलेपन का नाम नहीं,
समाज की पवित्रता अभिरक्षित हो, वैचारिक दृष्टि से पवित्र हो, सब में  कामनाओं का न्यास हो।  
सब चीज़ें अपनी हैं, यह ज्ञान हो जायेगा।  न किसी को भयभीत करें , न किसी से भयभीत हों ।
वस्तु संचय में उलझे हैं तो भय रहेगा।  
चौथेपन का अर्थ है, हम समाज को श्रेष्ठ व्यक्ति देकर जायें,
एक उत्तराधिकारी--
जिसे आप जानते हैं , पिता का सपना - पुत्र से पराजित होना चाहता है। 
पिता चाहता है कि पुत्र उससे अधिक समृद्ध हो, चर्चित हो, उसका संग्रह बड़ा हो। वह पिता के बिखरे, टूटे, अधूरे स्वप्नों को उत्तरावस्था में पूरा कर दे। 
ऐसा उत्तराधिकारी एकदम हाथ नहीं आएगा।
Successor किसी योजना से हाथ आएगा। 
हमारे संस्कार, चिंतन, विचारों से श्रेष्ठ उत्तराधिकारी का निर्माण होगा।  
मनु का संकल्प - धरती को ऐसा व्यक्ति जो अभूतपूर्व हो, दिया जाये। 
मनु के ध्येय ने एक बड़ा मूल्य स्थापित किया। 
भारत के चरित्र का नाम - राम। 
मर्यादा को छूने चले तो - श्री राम। 
भारत की बौद्धिकता, मनीषा, दार्शनिकता हैँ  - श्री कृष्ण
साहित्यकार, प्रियतम, दास, क्रांतिकारी हैँ - श्री कृष्ण 
                                                                                             ( क्रमशः)