रविवार, 20 अप्रैल 2014

गरीबी और बेरोजगारी ( भाग-१ )


          आज हमारी  पीढ़ी  के सामने कई स्वजनित समस्याऍ हैँ, क्योंकि अपनी दृष्टि  में हम अपने को वास्तविक स्थिति  से  ज्यादा हाई स्टेटस  का समझते हैं। अभिभावकों को भी श्रेय जाता है जो जी-जान से हमारी  इच्छाओं की पूर्ति किये जाते हैं भले ही उनकी सामर्थ्य हो या नहीं। निर्धन तो कोई नहीं है  लेकिन अल्प -धनी  (मिडिल क्लास ) आज समाज में  हेय  दृष्टि से देखा जाता है मवाद  की भांति, तभी तो इसे  हर कोई ढ़ांपना चाह्ता है  क्रेडिट कार्ड से जो ऋण या कर्ज नहीं कहलाता आजकल। फलस्वरुप इस सुविधा ने अशान्ति बढ़ा दी है। 

            प्रतिस्पर्धा की भावना से कोई भी अछूता नहीं है , फिर चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में हो या अर्थोपार्जन के।  प्रति वर्ष परीक्षा के परिणाम आने  के बाद कई  विद्यार्थी आत्महत्या करते हैं। 
अहम्  इतना  हावी  हो गया  है स्वयं को  कोई  अपने योग्य रोज़गार नहीं दिखाई देता।  ऐसा नहीं कि काम की कमी है हमारे देश में , लेकिन समस्या है कि हमें पसंद की नौकरी नहीं मिलती, या फिर हमारी छटपटाहट कम  होती हैं उस के लिए। यदि मिल जाए तो वह हमारी इच्छाओं के अनुकूल  होने की अपेक्षा करते हैं हम।
ईर्ष्या ,द्वेष की अग्नि हमारे अंतर्मन को अशांत करने लगती है। आज परायों का तो क्या सहोदर का सुख भी हमें जलाता है। यदि हमारा सहकर्मी अपनी मृदु-भाषिता द्वारा प्रभाावित करता है मालिक को तो हम उसे चाटुकार समझने लगते हैं। जब चाहे लाभ -हानि  सोचे बिना खेल ख़राब कर सकते  हैँ।
लोभ भी कुछ कम नहीं है ,जैसे ही किसी सहकर्मी/अपने  की पगार बढ़ी हमारे पेट में दर्द होने लगता है ,या किसी पड़ोसी/मित्र /संबधी की आय अधिक होने लगे तो हीन-भावना से ग्रसित  हो जाते हैं। जैसे-तैसे स्वयं को नियंत्रण में रख भी ले तो कोई न कोई चिंगारी लगा कर ऐसा आभास कराने  लगते  है कि अमुक पदार्थों  का अभाव है हमारे पास। 

  प्रदर्शन की भावना को लेकर समाज में अपने वर्चस्व   बनाये  रखने के लिए हमें मालूम भी नहीं पढता कि    कब बेकार अतिरिक्त  वस्तुओं पर अनावश्यक व्यय क़र बैठे हैं हम और हमारा बजट बिगड़ गया।

हमें वित्त-प्रबंधन , आवश्यकता -प्रबंधन, इच्छा-प्रबंधन  की आवश्यकता है ,
                 मैने  पढ़ा था कि समय़ की व्यस्तता  नहीं बल्कि अनियमतिता मनुष्य  को मारती  है.  इसी प्रकार यदि अपव्ययों से अपने को बचायें  तो  हमारे पास  धन की कमी नहीं होगी, यदि  हो तो हमें समझ लेना चाहिए कि हमाऱी वित्त-प्रबंधन  में कहीँ त्रुटि  हो गयी  है। हमारी आवश्यकताओं और इच्छाओं के बीच की दूरी  बहुत बढ़  गयी है।  सर्वप्रथम प्राथमिकता  के आधार पर, सतर्क हो कर हमें  केवल आवश्यकतायो की सूची बनानी  चाहिए। सतर्कता इस लिए कि कहीं कोई इच्छा चुपके से न आजाय।                                                                             (क्रमशः )