जीवन के स्तम्भ हैं -
- आहार,
- निद्रा एवं
- ब्रह्मचर्य-निधि
महृषि चरक के अनुसार हितकारी वह है,
जो शरीर की प्रकृति के अनुकूल है।
देह को भरा रखने के लिए मन खाली रखो।
आहार -अन्न ,प्राण ,औषधि आहार है।
आहार -अन्न ,प्राण ,औषधि आहार है।
- धन
धन,वित्त,,अर्थ ,सम्पति की तीन गति हैं
- १. दान,
- २ भोग, और
- ३ नाश।
- दान -अच्छे काम के लिए कहीं भी लगा हो। दान की तृप्ति सबसे बड़ी तृप्ति है।
- भोग -जो अत्यंत आवश्यक हो ,उसका भोग करें।
- नाश - जब दान नहीं करोगे , नाश होगा वित्त का। माँ -बाप की सम्पति से कितनो का जीवन चल रहा है ? बच्चे को योग्य बनाओ।
- भोजन कैसा हो ?
- भोजन में स्निग्धता हो - घी ,
- मधुरता -गुड़ की ढली ,
- भोजन ताजा होना चाहिए।
- भोजन सुन्दर स्थान पर खाना चाहिए।
- सबसे सुन्दर एकांत है। एकांत अर्थात् शोर-शराबे से रहित।
- सामूहिक रूप से करने का विधान है।
- खाना चबा कर खाना चाहिए।
- कम से कम एक बार दिन में पालती मार कर नीचे बैठ कर खाना चाहिए।
भोजन के बिना जीवन कर अर्थ कुछ नहीं।
जो कुछ कमा हैं , वह भोजन के लिए है।
अधिकतम ३० मिनट चाहिए भोजन खाने लगते हैं।
खड़े -खड़े भोजन नहीं करना चाहिए ,यह लाभकारी नहीं है। जान -बूझ कर् बीमारी को आमंत्रित करते हैं। W.C. नहीं होना चाहिए।
जो कुछ कमा हैं , वह भोजन के लिए है।
अधिकतम ३० मिनट चाहिए भोजन खाने लगते हैं।
खड़े -खड़े भोजन नहीं करना चाहिए ,यह लाभकारी नहीं है। जान -बूझ कर् बीमारी को आमंत्रित करते हैं। W.C. नहीं होना चाहिए।
- निद्रा
- भोजन करने के दो घंटे बाद सोना चाहिए।
- रात को आहार कम लेना चाहिए
- रात १०-११ के बीच अवश्य सो जाना चाहिए , आपात-काल को छोड़ कर।
- सुबह ४-५ के बीच उठना चाहिए।
सुबह जो जल्दी उठता है ,उसे कब्ज की शिकायत नहीं होती। देर से उठने वालों को कब्ज रहती है।
कफ सुबह ४ से ६ बजे प्रबल होता है। दिन में पित्त बढ़ता है। रात में वायु ,घुटनो जोड़ो का दर्द, बढ़ता है।
- ठीक समय पर सोना ज़रूरी है।
- बायीं करवट सोएं। बाएं सुर से सूर्य नाड़ी प्रबल होती है। हृदय पर जोर नहीं पड़ता है।
- तकिया इतना कि गर्दन नीचे न गिरे। डबल बैड का विधान नहीं है। ५० बीमारियां डबल बैड पर सोने से होती हैं।
- अलग सोने से संयम ,सदाचार व् प्रेम बढ़ता है.
- ब्रह्मचर्य -निधि
- सबसे प्रेम करो ,किसी से डरो नहीं।
- जीवन व्यवस्थित नहीं होगा तो तनाव होता है।
- आप किसी को मार कर भी आनंदित हो सकते है ,किसी को कुछ दे कर भी।
- साकारत्मक क्रिया करो और प्रसन्न रहो।
- क्रमशः
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