२० अक्टूबर,2015 दुर्गा मंदिर , पंजाबी बाग़ , नई दिल्ली में सत्संग |
सत्संग की महिमा शब्दों में अभिव्यक्त नहीं की जा सकती।
दोपहर तक वर्षा होती रही अमृतमय अनमोल वचनों की, झोली छोटी थी, बस इतने ही समेट कर ला सकी।
- नहीं कोई फायदा जीने का, रोते को हंसाना न आये।
- झगड़े सब घर में हैं, झगड़े में भी मुस्करा दो। "ऐसा क्यों हुआ, उसको ऐसा करना चाहिए" न सोचो। सोचो -हुआ तो हुआ।
- विकारों के घेरे में घिरे न रहो ,एक-एक कर के निकालने की कोशिश करो।
- मनुष्य में कितनी शक्ति है ! इसने मेहनत से समुद्र को सुखा कर पानी की जगह जमीन बना दी, जो बहुत कठिन काम है, फिर क्या अपने विकारों को नहीं पकड़ सकते।
- हम अपनी शक्तियों को उजागर करें, प्रयोग करें ।
- क्या हमारी इच्छाएं वाज़िब ,सही होती हैं? हम सांसारिक चीज़े मांगते हैं, क्या उनसे संतुष्टि मिलेगी? प्रभु पाने की इच्छा करो.
- धन की कमी नहीं है ,क्या शांत हो सकते हैं। इतना धन संभालेगा कौन -,चिंताएं ,परेशानी ,उलझनें देतीं है। धन. माया सुख नहीं देती।
- कोई व्यक्ति-विशेष या स्थान-विशेष ख़ुशी नहीं देते ,ख़ुशी हमारे साथ है।
- हर चीज़ प्रभु के हुक्म में हो रही है ,उसके हुक्म के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। हमारा हर कार्य उसकी मर्ज़ी से होता है , जब हुक्म को ध्यान में रखेंगें तो अच्छा बुरा कुछ नहीं लगता। जो करेगा, प्रभु करेगा । उसका हुक्म चलने दीजिये।
- सब अपनी प्रकति के अधीन है ,जो भी कुछ कर रहा है। बाहर -भीतर पांच तत्वों से बना पुतला, यह शरीर चल रहा है। यह प्रकृति के अधीन है और प्रकृतिजन्य भी है। हम प्रकृति से बने हैं। कहीं जल-तत्व तो कहीं अग्नि-तत्व बढ़ा हुआ है, इलाज होता है संतुलन -प्रकृति से।
- ज्ञानी न किसी का दोष देखता है न किसी को दोष देता है।
- अपने को शांत करना। जो जैसा चल रहा है ,चलने दो।
- कोई गलत कर रहा है ,समझाएं नहीं ,यह अहंकार है। किसी की गलती नहीं है , हर व्यक्ति अपने स्वभाव के अधीन है ,अपने वश में नहीं। ऐसा विचार हो ,तो हमेशा ही सब के साथ प्यार रहेगा ,किसी की गलती नहीं लगेगी।
- "मैं और मेरे" में उलझ कर हम अपनों को भी गैर कर रहे हैं।
- 'हम दो हमारे दो 'से रास्ते का मज़ा नहीं मिलेगा।
- गैरों में भी अपनत्व डालते जाएँ।
- अधूरी चीज़ ख़राब लगती है , 'हर व्यक्ति अपने स्वभाव में पूर्ण है' किसी की गलती नहीं देखे।
- दूसरों के कारण अपने को न उलझाएं। क्या हम चल सकते हैं दूसरों के कहने पर ?
- एक मंजिल है हमारी - "प्रभु " ,यह लक्ष्य भी गुरु बताते हैं।
- संसार ने बोला - 'पढ़ो, कमाओ ,शादी करो।'
- गुरु प्रभु पाने का लक्ष्य बताता है। क्या हमने यह लक्ष्य साधा ?
- लक्ष्य रखेंगे ,तभी पाएंगे
- राह के आकर्षणों में मत अटकिये , सीधा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाओ।