बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

वेदना



दिनांक २.२.२०११

दोपहर खाने के बाद एक सहेली से बतियाते अचानक हम दोनों की आँखों से आंसू बहने लगे अपने -अपने पिता जी को स्मरण करके । कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि हम बेटिओं को पिता जीके साथ अल्पकाल के लिए ही रहना होता है। " मायके में जब हमजायेंगे तो पिता जी वहां नहीं होंगे " इस सत्य पर विश्वास करना असंभव होता है । हर बार मन कहता है कि पिताजी अभी हमारे बीच ही हैं, जरूर मिलेंगे हम उनसे । और यही आशा वेदना बन जाती है मायके जाकर ....,.

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