खूब विद्या पढ़ो , पर पढ़कर अहंकारी मत बनो।
अपने से बड़ो का सम्मान करो।
विद्या ददाति विनयम् अर्थात विद्या हमें नम्रता देती /सिखाती है।
विद्या पढ़कर हृदयहीन न हो जाओ।
अपने से कमजोर, गरीब, बीमार ,वृद्ध पर दया करो ,हो सके तो सेवा करो, तन से ,मन से धन से जैसी सामर्थ्य हो।
विद्या का उचित उपयोग तभी हो पायेगा।
जब पीड़ा देखकर उसे दूर करने का मन करे तो समझ लो प्रभु तुम्हारे पास है।