आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
आपसे विनम्र निवेदन है कि स्वच्छ भारत अभियान के अंतरगत सभी भारतवासियों को मिटटी के दीयों में शुद्ध देसी घी से दीपावली मनाने का आहवान करें। प्रति वर्ष भारतीय करोड़ो रुपये की आतिशबाज़ी, पटाखे आदि जला कर राख़ करते हैं जिसके फलस्वरूप ध्वनि और वायु प्रदूषण के कारण प्रति वर्ष बढ़ी संख्या में लोग जलने की, बहरे हो जाने, शवसन संबधी रोगों के कारण अस्पतालों में भर्ती होते हैं ।
जिस प्रकार विकसित देशों में आवासीय क्षेत्रो में पटाखे जलाने पर रोक है और गैर-आवासीय निर्धारित क्षेत्रो में अग्रिम अनुमति के पश्चात ही एक सीमित मात्रा में पटाखे जला सकते हैं, इसी प्रकार भारत में भी कानून -व्यवस्था बनायी जाय ताकि लोगो को स्वच्छ वातावरण में सांस लेने का सौभाग्य प्राप्त हो।
लोगो को अवगत कराना है कि स्वच्छता सड़को तक सीमित न हो, हमारे मन वचन कर्म में भी दृष्टिगत होनी चाहिए। हमारी बातचीत में गाली-गलौज का कोई स्थान नहीं होना चाहिये। निरर्थक बातों में समय व्यर्थ न करके गीता के अनुसार कर्म को महत्व दिया जाना चाहिए। हमें निरंतर सृजनात्मक कार्यो में रूचि बढ़ानी चाहिए। द्वेष व् ईर्ष्या का हमारे मन में कोई स्थान न हो और वसुधैव कुटंबकम् परस्पर प्रेम व् सहयोग से जीवनयापन करें।
आपसे विनम्र निवेदन है कि स्वच्छ भारत अभियान के अंतरगत सभी भारतवासियों को मिटटी के दीयों में शुद्ध देसी घी से दीपावली मनाने का आहवान करें। प्रति वर्ष भारतीय करोड़ो रुपये की आतिशबाज़ी, पटाखे आदि जला कर राख़ करते हैं जिसके फलस्वरूप ध्वनि और वायु प्रदूषण के कारण प्रति वर्ष बढ़ी संख्या में लोग जलने की, बहरे हो जाने, शवसन संबधी रोगों के कारण अस्पतालों में भर्ती होते हैं ।
जिस प्रकार विकसित देशों में आवासीय क्षेत्रो में पटाखे जलाने पर रोक है और गैर-आवासीय निर्धारित क्षेत्रो में अग्रिम अनुमति के पश्चात ही एक सीमित मात्रा में पटाखे जला सकते हैं, इसी प्रकार भारत में भी कानून -व्यवस्था बनायी जाय ताकि लोगो को स्वच्छ वातावरण में सांस लेने का सौभाग्य प्राप्त हो।
लोगो को अवगत कराना है कि स्वच्छता सड़को तक सीमित न हो, हमारे मन वचन कर्म में भी दृष्टिगत होनी चाहिए। हमारी बातचीत में गाली-गलौज का कोई स्थान नहीं होना चाहिये। निरर्थक बातों में समय व्यर्थ न करके गीता के अनुसार कर्म को महत्व दिया जाना चाहिए। हमें निरंतर सृजनात्मक कार्यो में रूचि बढ़ानी चाहिए। द्वेष व् ईर्ष्या का हमारे मन में कोई स्थान न हो और वसुधैव कुटंबकम् परस्पर प्रेम व् सहयोग से जीवनयापन करें।