हमें निरोग रहने के लिए अपने आहार का ध्यान रखना चाहिए आहार से अभिप्राय केवल भोजन से नहीं बल्कि इसके अतिरिक्त सभी इन्द्रियों के आहार से है । हम आँखों से क्या देखते हैं कानो से क्या सुनते हैं मन में क्या सोचते हैं । प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति मे, जिस प्रकार तन मे कूढ़ा इकठा होने पर रोगी हो जाते हैं , उसी प्रकार मन मे स्वच्छ्ता न रहने पर अर्थात मन मे किसी के प्रति ईर्ष्या द्वेष क्रोध ,किसी की निंदा करने पर भी हम रोगी हो जाते हैं। किसी वस्तु या व्यक्ति विशेष मे दीर्घ काल तक दोष देखते रहने पर हमें हड्डियों मे दर्द होना शुरू हो जाता है , जो बाद मे गठिया रोग बन जाता है. जब हम छोटी छोटी बातों पर गुस्सा होते हैं तो एक समय के बाद उच्च रक्त चाप हो जाता है, जो आगे जाकर पैरालिसिस तक भी हो सकता है। जोर से चिला कर गुस्सा करने से साँस संबधी बीमारियाँ हो जाती है. । हर बात पर असतुन्ष्ठ रहने पर , प्रभु की कृपा-दृष्टि से आंखे मूँद कर दुखी रहने पर त्वचा संबधी रोग हो सकते हैं। प्रभु ने जैसा घर,पति पत्नी, बच्चे ,सास ससुर,देवर जेठ , समधी दादी, नानी, माता पिता और जो भी दिया है. , उस मे हमें प्रसन्न रहने चाहिए। तभी जो हम स्वस्थ जीवन व्यतींत कर पायेंगे।