शनिवार, 29 नवंबर 2014

घर घर की कहानी

 लड़की तो ठीक ही है, खाना बनाना भी आता है या नहीं?
शादी के बाद नौकरी तो करनी ही पड़ेगी।
हम दहेज़ विरोधी हैं ,हमे कुछ नहीं चाहिए , बस हमारे बरातियों का स्वागत अच्छे से होना चाहिए।
कितने हो जायेंगे ?
 यही कोई पंद्रह सौ .
 बरात थोड़ा कम करले
यह तो  अंदाजा  है, लिस्ट बनाने पर ज्यादा भी हो सकते है

बाराती थोरे कम करके  रिसेप्शन पर उन्हें बुला लीजिये।
 तो रिसेप्शन का आधा खर्चा आप दे दीजिये , हाँ , खाना  नॉन वेज होना चाहिए। 
ड्रिंक का इंतजाम हमने कर लिया है ,आप को तकलीफ नहीं देंगे.
तब तो क्षमा कीजिये  महाशय। 


मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

प्रधानमंत्री मोदीजी के नाम पत्र

  आदरणीय प्रधानमंत्री जी,  
                   आपसे विनम्र निवेदन है कि स्वच्छ भारत अभियान के अंतरगत सभी भारतवासियों को मिटटी के दीयों में शुद्ध देसी घी से दीपावली मनाने का आहवान करें।  प्रति वर्ष  भारतीय  करोड़ो रुपये की  आतिशबाज़ी, पटाखे आदि जला कर राख़ करते हैं जिसके फलस्वरूप ध्वनि और वायु प्रदूषण के कारण प्रति वर्ष  बढ़ी संख्या में लोग जलने की, बहरे हो जाने, शवसन संबधी रोगों के कारण अस्पतालों में भर्ती होते हैं
         जिस प्रकार विकसित देशों में आवासीय क्षेत्रो में पटाखे जलाने पर रोक है और गैर-आवासीय  निर्धारित क्षेत्रो में  अग्रिम अनुमति  के पश्चात ही  एक सीमित मात्रा में पटाखे जला सकते हैं, इसी प्रकार भारत में भी कानून -व्यवस्था बनायी जाय ताकि लोगो को   स्वच्छ वातावरण में सांस लेने का सौभाग्य प्राप्त हो।
लोगो को अवगत कराना है कि स्वच्छता  सड़को तक सीमित न हो, हमारे मन वचन कर्म में भी दृष्टिगत होनी चाहिए।  हमारी बातचीत में गाली-गलौज का कोई स्थान नहीं होना चाहिये। निरर्थक  बातों में समय व्यर्थ न करके गीता के अनुसार कर्म को महत्व दिया जाना चाहिए। हमें निरंतर सृजनात्मक कार्यो में रूचि बढ़ानी चाहिए। द्वेष व् ईर्ष्या का  हमारे मन में कोई स्थान न हो और  वसुधैव कुटंबकम्  परस्पर प्रेम व् सहयोग से जीवनयापन करें

सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

आज का मनुज

आज से सदियों पहले ब्राह्मण जाति  का वर्चस्व था किन्तु आज तो केवल वैश्य जाति पूरे संसार में दिखाई देती है।  कोई मित्र सम्बन्धी नहीं ,बस व्यापार ही  हो रहा है। माता- पिता,भाई -बहिन, पति- पत्नी, पुत्र- पुत्री व् अन्य सभी रिश्ते एक स्वार्थ के सूत्र में पिरोये हुए हैं. मन की दृष्टि व्यापारियों की भांति हो गयी है । प्रेम की सुगन्धि लुप्त हो गयी है।  चारों ओर ईर्ष्या और द्वेष के कैकटस दिखाई पढ़ते हैं. जरा सी कमी-बेशी हो जाने पर एक दूसरे से लड़ाई -झगड़ा ,मुकदमेबाजी,हत्याएं आये दिन ख़बरों में सुनने को मिलती हैं. हर आदमी होड़ में एक  दूसरे को पीछे छोड़ कर आगे निकल जाना चाहता है. कहाँ तक दौड़ेगा यह उसे खुद को भी पता नहीं है. बस एक दिशाहीन रेडार की तरह। आज के मनुज ने कुछ भी निश्चित नहीं किया क़ि उसे  कितना धन -सम्पति ,कैसी कार , क्या नौकरी-पेशा   ,कैसा घर, कैसी बहू  इत्यादि चाहिए ,बस उसके पडोसी या परिचितों से अधिक बेहतर होनी चाहिए।  एक अंतहीन प्रतियोगिता /प्रतिद्वन्दिता की भावना लिए भागे चला जा रहा है बिना किसी की हानि की चिंता किये आज का मनुज।          

सोमवार, 14 जुलाई 2014


ਮੇਰੇ ਪਾਪਾਜੀ
मेरे पिताजी

नर हो न निराश करो मन को



आओ हम, क्षितिज के उस पार से भी झाँकने न दें ,  निराशा को
 जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियां  तो  निश्चित ही आएँगी 
 हम  जहाँ भी हैं  ,  अपना  स्थान  क्यों  छोड़ें ?
 केवल अपने स्थान पर ही हीरा कहलाता है दांत
और उसके बाद…………
प्रतिकूलता की स्थिति में हम क्योंकर  करें पलायन 
 उचित होगा यदि 
इनके  मध्य ही रहकर उदासीन हो जाएँ 

और प्रतिकूलता सह न पाएगी उपेक्षा 
आत्मग्लानि में स्वयं ही अस्तित्वहीन हो जाएगी।


मंगलवार, 1 जुलाई 2014

लोधी गार्डन , बेबी नोनी और मैं

जून  हालाँकि गर्मी का महीना है , पर प्रभु ने हमारे लिए मौसम कुछ सुहाना बना दिया ताकि हम यानि कि बेबी  नोनी  और मैं लोधी गार्डन   के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठा सके.आइए यह वीडियो देखिये और बताइए  कैसी लगी। 

मंगलवार, 24 जून 2014

LODHI GARDEN IN NEW DELHI, INDIA

Amusement with nature in Lodhi Garden with NONI

रविवार, 20 अप्रैल 2014

गरीबी और बेरोजगारी ( भाग-१ )


          आज हमारी  पीढ़ी  के सामने कई स्वजनित समस्याऍ हैँ, क्योंकि अपनी दृष्टि  में हम अपने को वास्तविक स्थिति  से  ज्यादा हाई स्टेटस  का समझते हैं। अभिभावकों को भी श्रेय जाता है जो जी-जान से हमारी  इच्छाओं की पूर्ति किये जाते हैं भले ही उनकी सामर्थ्य हो या नहीं। निर्धन तो कोई नहीं है  लेकिन अल्प -धनी  (मिडिल क्लास ) आज समाज में  हेय  दृष्टि से देखा जाता है मवाद  की भांति, तभी तो इसे  हर कोई ढ़ांपना चाह्ता है  क्रेडिट कार्ड से जो ऋण या कर्ज नहीं कहलाता आजकल। फलस्वरुप इस सुविधा ने अशान्ति बढ़ा दी है। 

            प्रतिस्पर्धा की भावना से कोई भी अछूता नहीं है , फिर चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में हो या अर्थोपार्जन के।  प्रति वर्ष परीक्षा के परिणाम आने  के बाद कई  विद्यार्थी आत्महत्या करते हैं। 
अहम्  इतना  हावी  हो गया  है स्वयं को  कोई  अपने योग्य रोज़गार नहीं दिखाई देता।  ऐसा नहीं कि काम की कमी है हमारे देश में , लेकिन समस्या है कि हमें पसंद की नौकरी नहीं मिलती, या फिर हमारी छटपटाहट कम  होती हैं उस के लिए। यदि मिल जाए तो वह हमारी इच्छाओं के अनुकूल  होने की अपेक्षा करते हैं हम।
ईर्ष्या ,द्वेष की अग्नि हमारे अंतर्मन को अशांत करने लगती है। आज परायों का तो क्या सहोदर का सुख भी हमें जलाता है। यदि हमारा सहकर्मी अपनी मृदु-भाषिता द्वारा प्रभाावित करता है मालिक को तो हम उसे चाटुकार समझने लगते हैं। जब चाहे लाभ -हानि  सोचे बिना खेल ख़राब कर सकते  हैँ।
लोभ भी कुछ कम नहीं है ,जैसे ही किसी सहकर्मी/अपने  की पगार बढ़ी हमारे पेट में दर्द होने लगता है ,या किसी पड़ोसी/मित्र /संबधी की आय अधिक होने लगे तो हीन-भावना से ग्रसित  हो जाते हैं। जैसे-तैसे स्वयं को नियंत्रण में रख भी ले तो कोई न कोई चिंगारी लगा कर ऐसा आभास कराने  लगते  है कि अमुक पदार्थों  का अभाव है हमारे पास। 

  प्रदर्शन की भावना को लेकर समाज में अपने वर्चस्व   बनाये  रखने के लिए हमें मालूम भी नहीं पढता कि    कब बेकार अतिरिक्त  वस्तुओं पर अनावश्यक व्यय क़र बैठे हैं हम और हमारा बजट बिगड़ गया।

हमें वित्त-प्रबंधन , आवश्यकता -प्रबंधन, इच्छा-प्रबंधन  की आवश्यकता है ,
                 मैने  पढ़ा था कि समय़ की व्यस्तता  नहीं बल्कि अनियमतिता मनुष्य  को मारती  है.  इसी प्रकार यदि अपव्ययों से अपने को बचायें  तो  हमारे पास  धन की कमी नहीं होगी, यदि  हो तो हमें समझ लेना चाहिए कि हमाऱी वित्त-प्रबंधन  में कहीँ त्रुटि  हो गयी  है। हमारी आवश्यकताओं और इच्छाओं के बीच की दूरी  बहुत बढ़  गयी है।  सर्वप्रथम प्राथमिकता  के आधार पर, सतर्क हो कर हमें  केवल आवश्यकतायो की सूची बनानी  चाहिए। सतर्कता इस लिए कि कहीं कोई इच्छा चुपके से न आजाय।                                                                             (क्रमशः )

मंगलवार, 4 मार्च 2014

How to open a Kiosk

How to open a Kiosk

In our life number of times, we became buyers but we don't have experience of seller. Have you ever noticed that despite no need of the certain thing, we had to buy the same. This is repercussion of the seller's tacts.