शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

मेरे अम्बर की दुनिया

अम्बर की दुनिया
गौरैया, छोटी चिडिया

गौरैया तो नज़र ही नही आती है, जब से इन्तरनेत की तारो ने जाल बिछाया है.
मेरे बचपन की यादे, रोश्न्दानो मे गौरैया के घोसले, उनके अन्डे , फिर छोटी चिडिया का दिख्नना, ची-ची की आवाज़, बीथ का कापी की कवर पर गिर जाना. सब सपना सा लगता है. हमारी प्रगति ने हमसे गौरैया छीन ली. हमे बच्चो को दिखाने के लिए केवल उस का चित्र ही रह गया है.


कबूतर

दिल्ली अब कबूतरो का शहर बन गया है. एक समय था जब कबूतर प्रेम का सन्देश-वाहक होते थे. प्रेमी-प्रेमिकाये अपने पत्र इनके पैरो मे बान्ध कर उन तक पहुचाते थे. आज -मेल के युग मे , कबूतर फुर्सत मे है, अपने कबीलो के साथ खाते-पीते मौज मनाते है. मैने कबूतरो का सन्सार देखा है. आप भी देखिये.





































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