सोमवार, 19 अप्रैल 2010

आज १८ अप्रैल २०१० को , अपने घर के ड्राइंग कक्ष से जुड़े कमरे मैं वह लेटी हुई थी , दो सप्ताह अस्पताल के I.C.U. में रहने के बाद आयी थी । आँखे बंद थी , उन्हें छुया तो वह बोली थी लेकिन कठिनाई से । मेरी आँखों के सामने १ फरवरी १९८५ के क्षण आगये , जब माता जी आखिरी पलों में थी और यह उन्हें संतरे की फांक की रस निकाल कर एक एक बूँद उनके मुह में ड़ाल रही थी। अपने पति , बच्चों को छोड़ अपनी माताजी के पास ही रही कई दिनों तक।
कभी भी किसी की आलोचना नहीं करतीहैं , सकारात्मक भावनाओं से ओत -प्रोत , मातृत्व दर्शाती , हर्षित मुखिता रही हैं हमेशा।
अभी कुछ महीने पूर्व अपनी पोती की शादी me unka चित्र अगली पोस्ट में देखे

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