रविवार, 20 सितंबर 2015

सत्संग


२० अक्टूबर,2015 दुर्गा मंदिर , पंजाबी बाग़ , नई दिल्ली में  सत्संग    




















सत्संग की महिमा शब्दों में अभिव्यक्त नहीं की जा सकती। 
दोपहर तक वर्षा होती रही अमृतमय अनमोल वचनों की, झोली छोटी थी, बस इतने ही समेट कर ला सकी।


  • नहीं कोई फायदा जीने का, रोते को हंसाना  न आये। 
  • झगड़े सब घर में हैं,  झगड़े में भी मुस्करा दो। "ऐसा क्यों हुआ, उसको ऐसा करना चाहिए" न सोचो।  सोचो -हुआ तो हुआ। 
  • विकारों  के घेरे में घिरे न रहो ,एक-एक कर के निकालने की कोशिश करो। 
  • मनुष्य में कितनी शक्ति है ! इसने मेहनत से समुद्र को सुखा कर पानी की जगह जमीन बना दी, जो बहुत कठिन काम है,  फिर  क्या अपने विकारों को नहीं पकड़ सकते। 
  • हम अपनी शक्तियों को उजागर करें, प्रयोग करें । 
  • क्या हमारी इच्छाएं वाज़िब ,सही होती हैं?  हम सांसारिक चीज़े मांगते हैं, क्या उनसे संतुष्टि मिलेगी?   प्रभु  पाने की इच्छा करो.
  • धन की कमी नहीं है ,क्या शांत हो सकते हैं। इतना धन संभालेगा कौन -,चिंताएं ,परेशानी ,उलझनें देतीं  है।    धन. माया सुख नहीं देती। 
  •  कोई व्यक्ति-विशेष या स्थान-विशेष ख़ुशी नहीं देते ,ख़ुशी हमारे साथ है। 
  • हर चीज़ प्रभु के हुक्म में हो रही है ,उसके हुक्म के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। हमारा हर कार्य उसकी मर्ज़ी से होता है , जब हुक्म को ध्यान में रखेंगें तो अच्छा बुरा कुछ नहीं लगता।  जो  करेगा, प्रभु करेगा । उसका हुक्म चलने दीजिये।  
  • सब अपनी प्रकति के अधीन है ,जो भी कुछ कर रहा है। बाहर -भीतर पांच तत्वों से बना पुतला, यह शरीर चल रहा है।  यह प्रकृति के अधीन  है और प्रकृतिजन्य भी है। हम प्रकृति से बने हैं। कहीं जल-तत्व तो कहीं अग्नि-तत्व बढ़ा हुआ है, इलाज होता है संतुलन -प्रकृति से।  
  • ज्ञानी न किसी का दोष देखता है न किसी को दोष देता है। 
  • अपने को शांत करना।  जो जैसा चल रहा है ,चलने दो। 
  • कोई गलत कर रहा है ,समझाएं नहीं ,यह अहंकार है।  किसी की गलती नहीं है , हर व्यक्ति अपने स्वभाव के अधीन है ,अपने वश में नहीं।  ऐसा विचार हो ,तो हमेशा ही सब के साथ प्यार रहेगा ,किसी  की गलती नहीं लगेगी।  
  • "मैं और मेरे" में उलझ कर हम अपनों को भी गैर कर रहे हैं। 
  • 'हम दो हमारे दो 'से रास्ते का मज़ा नहीं मिलेगा। 
  •  गैरों में भी अपनत्व डालते जाएँ।
  • अधूरी चीज़ ख़राब लगती है , 'हर व्यक्ति अपने स्वभाव में  पूर्ण है' किसी की गलती नहीं देखे। 
  • दूसरों के कारण अपने को न उलझाएं। क्या हम चल सकते हैं दूसरों के कहने पर ?
  • एक मंजिल है हमारी - "प्रभु " ,यह लक्ष्य भी गुरु बताते हैं। 
  • संसार ने  बोला - 'पढ़ो, कमाओ ,शादी करो।' 
  •  गुरु प्रभु पाने का लक्ष्य बताता है। क्या हमने यह लक्ष्य साधा ? 
  • लक्ष्य रखेंगे ,तभी पाएंगे 
  • राह के आकर्षणों में मत अटकिये , सीधा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाओ।
                                                                                                                                   क्रमशः

बुधवार, 2 सितंबर 2015

संतो के अनमोल वचन



जीवन के स्तम्भ हैं -
  • आहार, 
  • निद्रा एवं 
  • ब्रह्मचर्य-निधि 

              
 

                                        महृषि चरक के अनुसार  हितकारी वह है, 
                                       जो शरीर की प्रकृति के अनुकूल है। 
                                        देह को भरा रखने के लिए मन खाली रखो। 



  आहार -अन्न ,प्राण ,औषधि आहार है।
  • धन 
धन,वित्त,,अर्थ ,सम्पति की तीन गति हैं 
  • १. दान,   
  • २ भोग, और
  •   ३ नाश।
  •  दान -अच्छे काम के लिए कहीं भी लगा हो। दान की तृप्ति सबसे बड़ी तृप्ति है। 
  • भोग -जो अत्यंत आवश्यक हो ,उसका भोग करें। 
  • नाश - जब दान नहीं करोगे , नाश होगा वित्त का।  माँ -बाप की सम्पति से कितनो का जीवन चल रहा है ? बच्चे  को योग्य बनाओ। 
  • भोजन कैसा हो ?
  •     भोजन में स्निग्धता हो -  घी , 
  • मधुरता -गुड़ की ढली ,
  • भोजन ताजा होना चाहिए।
     ब्रेड हमारी परंपरा का अंग नहीं है।बासी आहार जंक फ़ूड से बचें। 
  • भोजन  सुन्दर स्थान पर खाना चाहिए। 
  •  सबसे सुन्दर एकांत है। एकांत अर्थात्  शोर-शराबे से रहित। 
        आधा ध्यान टीवी में ,आधा भोजन में एकांत का नाश है।  
  • सामूहिक रूप से करने का विधान है। 
  • खाना चबा कर खाना चाहिए।
  • कम से कम  एक बार दिन में पालती मार  कर नीचे बैठ कर खाना चाहिए।
भोजन के बिना जीवन कर अर्थ कुछ नहीं। 
 जो कुछ कमा  हैं , वह भोजन के लिए है।  
अधिकतम  ३० मिनट चाहिए भोजन खाने  लगते हैं। 
खड़े -खड़े  भोजन नहीं करना चाहिए ,यह लाभकारी नहीं है। जान -बूझ कर् बीमारी को आमंत्रित  करते हैं। W.C. नहीं होना चाहिए। 

  • निद्रा 
  • भोजन  करने के दो घंटे बाद सोना चाहिए। 
  • रात को आहार कम लेना चाहिए 
  • रात १०-११ के बीच अवश्य सो जाना   चाहिए , आपात-काल  को छोड़ कर। 
  • सुबह ४-५ के बीच उठना चाहिए।  
सुबह जो जल्दी उठता है ,उसे कब्ज की शिकायत नहीं होती। देर से उठने वालों को कब्ज रहती है। 
कफ सुबह ४ से ६ बजे प्रबल होता है। दिन में पित्त बढ़ता है। रात में वायु ,घुटनो  जोड़ो  का दर्द, बढ़ता है। 
  • ठीक समय पर सोना ज़रूरी है। 
      सीधा सोने का विधान नहीं है, 
  • बायीं करवट सोएं। बाएं सुर से सूर्य नाड़ी प्रबल होती है।  हृदय पर जोर नहीं पड़ता है।
  •  तकिया इतना कि गर्दन नीचे न गिरे। डबल बैड का विधान नहीं है। ५० बीमारियां डबल बैड पर सोने से होती हैं। 
  • अलग सोने से संयम ,सदाचार व् प्रेम बढ़ता है. 
  •  ब्रह्मचर्य -निधि 
  • सबसे प्रेम करो ,किसी से डरो नहीं।  
  •  जीवन व्यवस्थित नहीं होगा तो तनाव होता है। 
  • आप किसी को मार कर भी आनंदित हो सकते है ,किसी को कुछ दे कर भी।  
  • साकारत्मक क्रिया करो और प्रसन्न रहो। 
  •                                                                               क्रमशः